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Science and Technology Facts | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथ्य

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    • Day Facts for 16-03-2017 - SCIENCE AND TECHNOLOGY – Famous scientists of India – Part 2
        • Homi Jahangir Bhabha (1909-1966) did his schooling from Cathedral & John Cannon School, Elphinston College and the Royal Institute of Science. He joined Gonvile and Caius College in Cambridge to pursue mechanical engineering. However, his mathematics tutor Paul Dirac induced his interest in mathematics and theoretical physics. In 1937, Bhabha, together with German physicist W. Heitler, solved the riddle about cosmic rays. Bhabha’s discovery of the presence of nuclear particles in the showers of electrons created by the collision of cosmic rays and the atoms of air was used to validate Einstein’s theory of relativity earned him fame worldwide. In 1940, when Bhabha was on a holiday in India, C. V. Raman persuaded him to join Indian Institute of Science (IISc) Bangalore as a Reader in physics. He was selected as Fellow of the Royal Society, London I 1941 for his contribution in the field of cosmic rays, elementary particles and quantum mechanics. Bhabha realized the need for an institute for fundamental research, and the result was the establishment of Tata Institute of Fundamental Research (TIFR) in Mumbai in 1945. In 1948, Bhabha was appointed as the Chairman of the International Atomic Energy Commission, which built various nuclear reactors under his guidance. Bhabha also served as the President of the first UN Conference on the Peaceful Uses of Nuclear Energy, held in Geneva in 1955. From 1960 to 1963, he was the President of the International Union of Pure and Applied Physics. He is also the recipient of Adam’s Award, Padma Bhushan, Honorary Fellow of American Academy of Arts and Sciences and foreign Associate of the National Academy of Sciences in the United Nations.

          Subramaniam Chandrasekhar (1910-1995), a nephew of Sir C. V. Raman, had his early education from private tutors in Lahore, and completed his secondary School education from Hindu High School, Chennai. He then joined the Presidency College and completed his Bachelor of Science degree with honours. His first scientific paper Compton Scattering and the New Statistics, was published in 1928 in the Proceedings of the Royal Society. He was accepted as a research student by R. H. Fowler at Cambridge University on the basis of his research paper. He developed the theory of white dwarf stars, showing that a star of mass greater than 1.45 times the mass of the Sun could not become a white dwarf. This limit is now called the Chandrasekhar limit. He earned his doctorate in 1933, and was awarded the Prize Fellowship at Trinity College, Cambridge. In 1937, he became a Research Associate at the University of Chicago, and became the Morton D. Hall Distinguished Service Professor in Astronomy and Astrophysics in 1952. He established the Astrophysics Journal and transformed it into the national journal of the American Astronomical Society. He was elected Fellow of the Royal Society of London, and in 1962, received the Society’s Royal medal. He also received the US National Medal of Science, and was awarded the Nobel Prize for Physics in 1983 for his theoretical work on the physical processes of importance to the structure of stars and their evolution.

          Vikram Sarabhai (1919-1971) was a keen learner and the seeds of scientific curiosity, ingenuity and creativity were sown early in his life. After completing his schooling from Gujarat, he obtained his tripos at at St. John’s College in 1939. After his return to India, he worked alongside Sir C. V. Raman in the field of cosmic rays at IISc, Bangalore. He established the Physics Research Laboratory in Ahmedabad in 1948 with Professor K.K. Ramanathan as Director. He later converted it into the cradle of the Indian Space Programme. He organized and created the ATIRA, the Ahmedabad Textile Industry’s Research Association at the age of 28, and was its Honorary Director during 1949-56. He also contributed in building and directing the Indian Institute of Management, Ahmedabad from 1962-1965. He pioneered the expansion of the Indian Space Research Organization (ISRO). India’s first satellite Aryabhata launched in 1975, was one of the many projects planned by him. He was instrumental in harnessing space science to the development of the country in the fields of communication, meteorology, remote sensing and education. The Satellite Instructional Television Experiment (SITE) launched in 1975-76, brought education to five million people in 2,400 Indian villages. He established the Community Science Centre in Ahmedabad  in 1965 to popularise science among children. He was the recipient of the Bhatnagar Memorial Award for Physics in 1962, the Padma Bhushan in 1966, and was awarded the Padma Vibhushan posthumously. He was the Chairman of the Atomic Energy Commission in 1966, Vice-President and Chairman of the UN Conference on peaceful uses of outer space in 1968, and President of the 14th General Conference of the International Atomic Energy Agency. The International Astronomical Union named a crater in the moon (in the Sea of Serenity) after him.   [##anchor## Read Part 1 here]

        • होमी जहाँगीर भाभा (1909-1966) ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कैथेड्रल एंड जॉन केनन स्कूल, एलफिन्स्टन कॉलेज और रॉयल इंस्टिट्यूट ऑफ़ साइंस से पूरी की। यांत्रिक अभियांत्रिकी में अपनी शिक्षा पूरी करने के लिए उन्होंने कैंब्रिज के गॉन्विल एंड कैओस कॉलेज में प्रवेश प्राप्त किया। हालांकि उनके गणित के शिक्षक पॉल डिराक ने उनमें गणित और सैद्धांतिक भौतिकशास्त्र के प्रति रूचि जगाई। वर्ष 1937 में भाभा ने जर्मन भौतिकशास्त्री डब्लू. हेइट्लर के साथ मिलकर ब्रह्मांड-रश्मि से संबंधित पहेली को सुलझाया। ब्रह्मांड-रश्मि और हवा के कणों के टकराने से निर्मित होने वाली इलेक्ट्रॉन्स की बौछार में परमाणु कणों की उपस्थिति से संबंधित भाभा की खोज का उपयोग आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत की पुष्टि के लिए किया गया। इसने उन्हें विश्व स्तर पर प्रसिद्धी दिलाई। वर्ष 1940 में जब भाभा छुट्टियों में भारत आए तब सर सी. वी. रामन ने उन्हें भौतिकशास्त्र के व्याख्याता के रूप में भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर से जुड़ने के लिए प्रेरित किया। ब्रह्मांड-रश्मि, प्राथमिक कणों, और क्वांटम यांत्रिकी के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 1941 में वे लंदन की रॉयल सोसाइटी के फेलो चुने गए। भाभा ने बुनियादी अनुसंधान के लिए एक संस्थान की आवश्यकता को महसूस किया और इसका परिणाम वर्ष 1945 में मुंबई में टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ फंडामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) की स्थापना में हुआ। वर्ष 1948 में भाभा को अंतर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जिसनें उनके मार्गदर्शन में अनेक परमाणु प्रतिघातकों का निर्माण किया। भाभा ने परमाणु ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोगों पर जिनेवा में वर्ष 1955 में आयोजित पहले संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की अध्यक्षता भी की। वर्ष 1960 से 1963 तक वे शुद्ध और अनुप्रयुक्त भौतिकशास्त्र के अंतर्राष्ट्रीय संघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्हें एडम्स पुरस्कार, पद्मभूषण, कला एवं विज्ञान की अमेरिकी सोसाइटी के मानद फेलो और संयुक्त राष्ट्र में राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के विदेशी सहयोगी से भी सम्मानित किया गया।

          सुब्रमण्यम चंद्रशेखर (1910-1995), जो सर सी. वी. रामन के भतीजे थे, की प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में निजी शिक्षकों द्वारा हुई, और उन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा चेन्नई के हिंदू हाई स्कूल से पूर्ण की। उसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया और विज्ञानं स्नातक की उपाधि प्राविण्य के साथ पूर्ण की। उनका पहला वैज्ञानिक शोधपत्र कॉम्प्टन स्कैटरिंग एंड द न्यू स्टेटिस्टिक्स वर्ष 1928 में रॉयल सोसाइटी की प्रक्रिया के दौरान प्रकाशित हुआ। उनके इसी शोधपत्र के आधार पर आर. एच. फाउलर ने उन्हें कैंब्रिज में एक शोध विद्यार्थी के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने श्वेत बौने तारों का सिद्धांत विकसित किया, जिसमें उन्होंने दर्शाया कि सूर्य के आयतन से 1.45 गुना बड़े आयतन का तारा एक श्वेत तारा नहीं बन सकता। इस सीमा को आज चंद्रशेखर सीमा के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1933 में उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की, और वर्ष 1937 में उन्हें कैंब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज की प्रतिष्ठित फेलोशिप प्राप्त हुई। वर्ष 1937 में वे शिकागो विश्वविद्यालय में एक शोध सहयोगी के रूप में प्रविष्ट हुए और वर्ष 1952 में खगोल विज्ञान और खगोल भौतिकी के मोर्टन डी. हॉल प्रतिष्ठित प्रोफेसर बने। उन्होंने खगोल भौतिकी पत्रिका की स्थापना की और अंततः उसे अमेरिकी खगोल विज्ञान सोसाइटी की राष्ट्रीय पार्टीका के रूप में परिवर्तित किया। वर्ष 1962 में वे लंदन की रॉयल सोसाइटी के फेलो चुने गए और उन्होंने सोसाइटी का रॉयल मैडल प्राप्त किया। उन्हें संयुक्त राष्ट्र राष्ट्रीय विज्ञान मैडल भी प्रदान किया गया और वर्ष 1938 में उन्हें सितारों की संरचना और उनकी भौतिक प्रक्रियाओं पर उनके महत्त्व के सैद्धांतिक विकास के कार्य के लिए भौतिकशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।

          विक्रम साराभाई (1919-1971) एक उत्सुक विद्यार्थी थे और वैज्ञानिक उत्सुकता, सरलता और रचनात्मकता के बीज उनके जीवन में छोटी आयु में ही अंकुरित हुए। गुजरात से अपनी शालेय शिक्षा पूर्ण करने के बाद वर्ष 1939 में उन्होंने सेंट जॉन कॉलेज से अपनी ट्राइप्स प्राप्त की। भारत वापसी के बाद उन्होंने सर सी. वी. रामन के साथ भारतीय विज्ञान संस्थान बैंगलोर में ब्रह्मांड-रश्मि के क्षेत्र में कार्य किया। वर्ष 1948 में उन्होंने अहमदाबाद में भौतिकशास्त्र अनुसंधान प्रयोगशाला की स्थापना की जिसके निदेशक प्रोफेसर के. के. रामनाथन थे। बाद में उन्होंने इसे भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के मुख्य केंद्र के रूप में परिवर्तित कर दिया। 28 वर्ष की अल्प आयु में उन्होंने एटीआईआरए (अहमदाबाद वस्त्रोद्योग अनुसंधान संघ) का निर्माण और आयोजन किया और वर्ष 1949-1956 के दौरान वे इसके मानद निदेशक भी रहे। वर्ष 1962 से 1965 तक उन्होंने भारतीय प्रबंध संस्थान, अहमदाबाद के निर्माण और निर्देशन में भी काफी योगदान दिया। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के विस्तार में भी अग्रणी भूमिका निभाई। वर्ष 1975 में प्रक्षेपित किया गया भारत का पहला उपग्रह आर्यभट उनके द्वारा नियोजित की गई अनेक परियोजनाओं में से एक था। देश के दूर संचार, मौसम-विज्ञान, सुदूर संवेदन, और शिक्षा के क्षेत्रों में अंतरिक्ष विज्ञान के विकास के उपयोग में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान था। वर्ष 1975-76 में प्रक्षेपित किया गया उपग्रह निर्देशात्मक टेलीविजन प्रयोग भारत के 2400 गांवों के पचास लाख लोगों तक शिक्षा को लाया। विद्यार्थियों में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए वर्ष 1965 में उन्होंने अहमदाबाद में सामुदायिक विज्ञान केंद्र की स्थापना की। वर्ष 1962 में उन्हें भौतिकशास्त्र के लिए भटनागर पुरस्कार प्रदान किया गया, वर्ष 1966 में पद्मभूषण पुरस्कार और उन्हें मरणोपरांत पद्मविभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1966 में वे परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष बने, वर्ष 1968 में बाह्य अंतरिक्ष के शांतिपूर्ण उपयोग पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के उपाध्यक्ष और अध्यक्ष बने और अंतर्राष्टीय परमाणु ऊर्जा अभिकरण के 14 वें महाधिवेशन के अध्यक्ष बने। अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने चंद्रमा के एक ज्वालामुखी पर्वत के मुख (शांति के सागर में) को उनका नाम दिया है।   [##anchor## भाग १ पढ़ें यहाँ]         



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    • Day Facts for 09-03-2017 -  SCIENCE AND TECHNOLOGY – Famous scientists of India – Part 1
        • 1. Sir Jagadish Chandra Bose (1858-1937) was originally interested in Biology, but his teachers inspired in him interest for Physics. He obtained his B.A. degree from Christ College, Cambridge, and returned to India in 1885 and joined Presidency College, Kolkata. Bose developed the use of galena crystals for making receivers, both for short wavelength radio waves and for white and ultraviolet light. In 1895, two years before Marconi’s demonstration, Bose demonstrated wireless communication using radio waves, using them to ring a bell remotely and to explode some gunpowder. Bose was knighted in 1917 and soon thereafter elected Fellow of the Royal Society, London, (both as physicist and biologist!).
          2. Srinivasa Ramanujan (1887-1920) came across the book “Synopsis of Elementary Results in Pure Mathematics” by G. S. Carr, during his high school. Influenced by it, he began working on mathematics on his own, summing geometric and arithmetic series. His research paper on Bernoulli numbers, in 1911, brought him recognition as a mathematical genius. Ramanujan’s work with G.H.Hardy of Cambridge produced important results. He made outstanding contributions to analytical number theory, elliptic functions, continued fractions, and infinite series.
          3. Sir C. V. Raman’s (1888-1970) academic brilliance was established at a very young age. When he was barely eighteen, he graduated at the top of his class and received his M.A. degree with honours. He made enormous contributions to research in the areas of vibration, sound, musical instruments, ultrasonics, diffraction, photoelectricity, colloidal particles, X-ray diffraction, magnetron, dielectrics, etc. In 1928, he announced his discovery of what is now known as the Raman Effect. He was knighted in 1929, and in 1930, became the first Asian scientist to be awarded the Nobel Prize for Physics for his discoveries relating to the scattering of light (the Raman Effect). In 1934, he became the Director of the newly established Indian Institute of Science at Bangalore, where he remained till his retirement. The Government of India conferred upon him its highest award,the Bharat Ratna in 1954.
          4. Meghnad Saha (1893-1956) established himself as one of the leading physicists of the time. His theory of high-temperature ionization of elements and its application to stellar atmospheres, as expressed by the Saha equation, is fundamental to modern astrophysics. Subsequent development of his ideas has led to increased knowledge of the pressure and temperature distributions of stellar atmospheres. In 1947 he established the Indian Institute of Nuclear Physics (now known as the Saha Institute of Nuclear Physics).
          5. Satyendra Nath Bose (1894-1974)  did his schooling at Hindu School, Kolkata, and then joined Presidency College. His teacher at the Presidency College was Jagadish Chandra Bose - whose other stellar pupil was Meghnad Saha. He derived with Saha, the Saha-Bose equation of state for a nonideal gas. In 1921, Bose left Kolkata to become a Reader at the Dakha University. It was during this period that he wrote the famous paper on the statistics of photons. It was named Bose statistics after him and is now an integral part of physics. Paul Dirac, the legendary physicist, coined the term boson for particles obeying these statistics.
          6. Shanti Swarup Bhatnagar (1894-1955) had a deep interest since a very early age in geometry and algebra and in making mechanical toys. In August 1940, Bhatnagar took over as the Director of the newly created Directorate of Scientific and Industrial Research. This organization became the Council of Scientific and Industrial Research. Bhatnagar’s tenure saw the setting up of 12 laboratories and the total number of CSIR laboratories today stands at 40. Shanti Swarup Bhatnagar played a significant part along with Homi Bhabha, Prasanta Chandra Mahalanobis, Vikram Sarabhai and others in building of post-independence Science & Technology infrastructure and in the formulation of India’s science policies.


        • 1. सर जगदीश चंद्र बोस (1858-1937) की प्रारंभ में जीव-विज्ञान में रूचि थी, परंतु उनके शिक्षक ने उनमें भौतिकशास्त्र के प्रति रूचि प्रेरित की। उन्होंने कला में स्नातक की उपाधि कैंब्रिज के क्राइस्ट कॉलेज से प्राप्त की और वर्ष 1885 में वे भारत वापस आ गए, जहाँ कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। बोस ने रिसीवर (चोगा) के निर्माण के लिए,लघु तरंगदैर्ध्य रेडियो तरंग और श्वेत और पराबैंगनी प्रकाश, दोनों के लिए गैलेना (सीसे का धातु-पाषाण) माणभ का उपयोग किया। मारकोनी के प्रदर्शन से दो वर्ष पूर्व वर्ष 1895 में बोस ने रडियो तरंग के उपयोग से बेतार संचार का प्रदर्शन किया, जिसका उपयोग उन्होंने दूर से एक घंटी बजाने और कुछ बारूद में विस्फोट के लिए किया। वर्ष 1917 में बोस को नाइट की उपाधि प्रदान की गई और उसके कुछ समय बाद वे लंदन की रॉयल सोसाइटी के फेलो चुने गए (भौतिकशास्त्री और जीवविज्ञानी, दोनों के रूप में!) ।
          2. श्रीनिवास रामानुजम (1887-1920) ने अपनी माध्यमिक शिक्षा के दौरान जी. एस. कार्र द्वारा लिखी गई पुस्तक “शुद्ध गणित में प्राथमिक परिणाम का सारांश” पढ़ी। इससे प्रभावित होकर उन्होंने स्वयं ही गणित पर काम करना शुरू किया और ज्यामितीय और अंकगणितीय श्रेणियों को संक्षिप्त किया। वर्ष 1911 में बर्नोली संख्याओं पर उनके शोध-पत्र के उन्हें निपुण गणितज्ञ के रूप में मान्यता दिलाई। कैंब्रिज के जी. एच. हार्डी के साथ किये गए उनके कार्यों ने महत्वपूर्ण परिणाम दिए। उन्होंने विश्लेषणात्मक संख्या सिद्धांत, दीर्घवृत्तीय फलन, निरंतर भिन्न अंक, और अनंत श्रेणी में असाधारण योगदान दिया।
          3. सर सी. वी. रामन की (1888-1970) शैक्षणिक प्रतिभा काफी युवावस्था में ही स्थापित हुई। जब वे केवल अठारह वर्ष के थे वे अपनी कक्षा में शीर्ष पर रहते हुए स्नातक बने और उन्होंने एम.ए. की उपाधि ऑनर्स के साथ उत्तीर्ण की। उन्होंने कंपन, ध्वनि, संगीत वाद्ययंत्र, अल्ट्रासोनिक्स, विवर्तन, फोटोइलेक्ट्रिसिटी, कोलाइडयनल कण, एक्स-रे विवर्तन, मैग्नेट्रोन, डायलेक्ट्रिक्स इत्यादि में असाधारण योगदान दिया। वर्ष 1928 में उन्होंने अपनी उस खोज की घोषणा की जिसे अब रामन प्रभाव कहा जाता है। वर्ष 1929 में उन्हें नाइट की उपाधि प्रदान की गई और वर्ष 1930 में वे प्रकाश के प्रकीर्णन (रामन प्रभाव) से संबंधित उनकी खोजों के लिए भौतिकशास्त्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले एशियाई वैज्ञानिक बने। वर्ष 1934 में वे बंगलोरे में नए स्थापित भारतीय विज्ञान संस्थान के निदेशक बने, जहाँ वे सेवा निवृत्ति तक रहे। भारत सरकार ने वर्ष 1954 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार “भारत रत्न” से सम्मानित किया।
          4. मेघनाद साहा (1893-1956) ने स्वयं को अपने समय के शीर्ष भौतिकशास्त्रियों में से एक के रूप में स्थपित किया। तत्वों के उच्च तापमान आयनीकरण और तारकीय वायुमंडल में उसके अनुप्रयोग का उनका सिद्धांत, जिसे साहा समीकरण के रूप में व्यक्त किया जाता है, आधुनिक खगोल भौतिकी का मूल आधार है। उनके विचारों के बाद के विकास का परिणाम तारकीय वायुमंडल के दबाव और तापमान वितरण के और अधिक ज्ञान में हुआ। वर्ष 1947 में उन्होंने भारतीय नाभिकीय भौतिकी संस्थान की स्थापना की (जिसे साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान कहा जाता है) ।
          5. सत्येन्द्रनाथ बोस (1894-1974) की विद्यालयीन शिक्षा कोलकाता के हिंदू स्कूल में हुई और बाद में उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया। प्रेसीडेंसी कॉलेज में उनके शिक्षक थे जगदीशचंद्र बोस दृ जिनके अन्य प्रतिभावान विद्यार्थी थे मेघनाद साहा। उन्होंने साहा के साथ मिलकर गैर-पक्षीय गैस के लिए साहा-बोस स्थिति समीकरण उत्पन्न किया। वर्ष 1921 में बोस ने कोलकाता छोड़ दिया और वे ढाका विश्वविद्यालय में व्याख्याता बन गए। इस समय के दौरान उन्होंने फोटोंस की सांख्यिकी पर अपना प्रसिद्ध शोध-पत्र लिखा। इसे उनके नाम पर बोस सांख्यिकी कहा जाता है और अब यह भौतिक शास्त्र का एक अभिन्न अंग है। प्रसिद्ध भौतिकशास्त्री पॉल डिराक ने इन संख्यिकियों का पालन करने वाले कणों के लिए बोसॉन शब्द की रचना की।
          6. शांति स्वरुप भटनागर (1894-1955) की छोटी आयु से ही ज्यामिति और बीजगणित में और यांत्रिक खिलौने बनाने गहरी रूचि थी। अगस्त 1940 में भटनागर ने नव गठित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान निदेशालय के निदेशक का पदभार संभाला। यह संगठन बाद में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद बना। भटनागर के कार्यकाल में 12 प्रयोगशालाएँ स्थापित हुई, आज सीएसआईआर प्रयोगशालाओं कि कुल संख्या 40 तक पहुँच गई है। शांति स्वरुप भटनागर ने डॉ. होमी भाभा, प्रशांत चंद्र महालनोबिस, विक्रम साराभाई और अन्य के साथ स्वतंत्रता पश्चात के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी अधोसंरचना के निर्माण और भारत की विज्ञान नीतियों के निर्माण में महत्वपूर्ण सहयोग किया।



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    • Day Facts for 02-03-2017 -  SCIENCE AND TECHNOLOGY – Indian Missile Defence Systems
        • 1. A missile defence shield is designed to counter various types of ballistic missiles – (a) Range-wise (short, medium, intermediate and long), (b) Speed-wise, (c) Size-wise and (d) Performance-wise.
          2. A typical well-designed Missile Defense System should be an integrated, layered architecture providing multiple opportunities to destroy missiles and their warheads before they reach their programmed targets. Hence, the core components would be (1) Networked sensors and Radars (ground/sea-based) for target detection and tracking, (2) Interceptor missiles (ground/sea-based) to destroy the incoming missile, (3) Command and control centre to help the operational commanders.
          3. India’s indigenous missile defence shield owes its origin to the threat perception from China and Pakistan. While Pakistan has short and medium-range missiles, with a capability to hit major targets in India, the Chinese have a big arsenal of solid-fuelled missiles, a potent threat to India. Chinese intermediate range ballistic missiles (IRBM) and medium-range ballistic missiles (MRBM) can reach India’s farthest corners.  Read more on Indian Missiles, here
          4. Although the Akash and Trishul missile projects were part of the Integrated Guided Missile Development Programme (IGMDP) launched in 1983, clear plans to construct a missile defence shield seemingly began in the 1990s, after reports of Pakistan’s deployment of Chinese missiles. India has since pursued various options.
          5. Responding to Pakistan’s purchase of the M-9 and M-11 ballistic missiles from China, India bought six batteries of Russian S-300 surface-to-air missiles (SAMs) in August 1995 to protect major cities. (Currently, due to new US sanctions on Russia, this purchase is facing problems). Also, in all only five nations in the world have a BMD – US, Russia, Israel, China and now India.
          6. India's air defence network is made up of (1) Air Defence Ground Environment System (ADGES), and (2) Base Air Defence Zones (BADZ). The ADGES network gives a wide area radar coverage and detects most aerial incursions into Indian airspace, while the BADZ system is concentrated with radars, interceptors, SAMs (surface to air missiles) and AAA (anti aircraft warfare) units to provide an effective defensive barrier to attacks.
          7. India’s BMD is a double-tiered system made up of two land and sea-based interceptor missiles – (1) the Prithvi Air Defence (PAD) missile for high altitude interception (exo-atmospheric), and (2) the Advanced Air Defence (AAD) Missile for lower altitude interception (endo-atmospheric). This shield can intercept any incoming missile launched 5,000 kilometres away.   Read more on military developments worldwide, here
          8. On March 01, 2017, India successfully test-fired (for the second time in a month) the indigenously developed supersonic interceptor missile capable of destroying any incoming enemy ballistic missile at low altitude. The BMD system will protect India from the long-range ballistic missiles proliferating in our neighbourhood. DRDO (Defence Research and Development Organisation) expects to have shield ready for deployment by 2022.
          9. The Barak 8 (Hebrew word : Lightning), an Indian-Israeli surface-to-air missile (SAM) will defend against any type of airborne threat including aircraft, helicopters, anti-ship missiles, and UAVs as well as cruise missiles and combat jets out to a maximum range of 90 to 100. Indian Navy has received deliveries already.
          10. Serious challenges remain. Any BMD system can be overwhelmed by a flurry of ballistic missiles. A nuclear attack can be launched using deep-penetration strike aircrafts and BMD technology is useless there. BMD systems are vulnerable to cruise missiles as they fly at low altitudes. India’s endo-atmospheric system (AAD) may be able to tackle it to some extent. Do not miss our detailed Bodhi on “India’s defence preparedness”, here


        • 1. एक मिसाइल रक्षा कवच की रचना विभिन्न प्रकार की बैलिस्टिक मिसाइलों के अवरोध की दृष्टि से की जाती है - (ए) मारक-क्षमता के अनुसार (छोटी, मध्यम मध्यवर्ती और लंबी), (बी) गति के अनुसार, (सी) आकार के अनुसार, (डी) निष्पादन के अनुसार।
          2. एक व्यवस्थित रूप से रचित मिसाइल रक्षा प्रणाली एक एकीकृत, परतों वाली संरचना होनी चाहिए जो मिसाइलों और उनके हथियारों को गंतव्य निशाने पर पहुँचने से पहले नष्ट करने के बहुविध अवसर प्रदान करती हो। अतः इसके केंद्रीय घटक निम्न हो सकते हैं (1) लक्ष्य की खोज के लिए और उसका पता लगाने के लिए नेटवर्क किये गए संवेदक और राडार (सतह/समुद्र आधारित), (2) आने वाली मिसाइलों को नष्ट करने के लिए अवरोधक मिसाइलें (सतह/समुद्र आधारित), (3) परिचालानात्मक कमांडरों की सहायता के लिए आदेश और नियंत्रण केंद्र।
          3. भारत के स्वदेशी मिसाइल रक्षा कवच का उद्गम चीन और पाकिस्तान से होने वाले खतरे में है। जहाँ पाकिस्तान के पास छोटी और मध्यम मारक क्षमता वाली मिसाइलें हैं जिनकी भारत में किसी भी लक्ष्य पर निशाना लगाने की क्षमता है, वहीँ चीन के पास ठोस इंधन वाले बड़े मिसाइल अस्त्र हैं, जो भारत के लिए एक संभावित खतरा हैं। चीन की मध्यवर्ती दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें (आईआरबीएम) और मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलें (एमआरबीएम) भारत के सबसे दूर के कोनों तक पहुँच सकती हैं। भारतीय मिसाईलों पर अधिक जानकारी पढ़ें यहां।
          4. हालांकि आकाश और त्रिशूल मिसाइल परियोजनाएं वर्ष 1983 में शुरू किये गए एकीकृत नियंत्रित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आई.जी.एम.डी.पी.) का हिस्सा थीं, एक मिसाइल रक्षा कवच के निर्माण की स्पष्ट योजना पाकिस्तान द्वारा चीनी मिसाइलों की तैनाती की खबरों के बाद प्रकट रूप से 1990 के दशक में शुरू हुई। उसके बाद से भारत ने अनेक विकल्पों का विचार किया है।
          5. पाकिस्तान द्वारा चीन से एम-9 और एम-11 बैलिस्टिक मिसाइलें खरीदने की प्रतिक्रिया के रूप में प्रमुख शहरों के संरक्षण के लिए भारत ने अगस्त 1995 में रूस से एस-300 सतह से हवा में मार करने में सक्षम मिसाइलों की छह खेपें खरीदीं (वर्तमान में रूस पर लगे नये प्रतिबंधों के कारण, इस खरीदी में समस्याऐं आ रही हैं)। इसके अलावा अभी केवल 5 देषों के पास बीएमडी (BMD) क्षमताऐं हैं - अमेरिका, रूस, ईजराईल, चीन और भारत।
          6. भारत का हवाई रक्षा संजाल निम्न से मिलकर बना है - (1) हवाई रक्षा सतही पर्यावरण प्रणाली (एडीजीईएस -ADGES), और (2) बेस हवाई रक्षा क्षेत्र (बीएडीजेड-BADZ) । एडीजीईए संजाल एक विस्तृत क्षेत्र राडार आवरण प्रदान करता है और भारतीय हवाई क्षेत्र में अतिक्रमण करने वाली अधिकांश मिसाइलों को खोज सकता है। जबकि बीएडीजेड प्रणाली राडारों, अवरोधकों, SAM (सतह से हवा में मार करने वाली) और एएए (वायु यान रोधी युद्धकला) इकाइयों से संकेंद्रित होता है जो आक्रमणों के विरुद्ध एक प्रभावी बाधा प्रदान करता है।
          7. भारत का बीएमडी एक द्वि-स्तरीय प्रणाली है जो दो सतही और समुद्र आधारित अवरोधक मिसाइलों से मिलकर बना है - (1) पृथ्वी हवाई रक्षा (पीएडी - PAD) मिसाइल, जो उच्च ऊँचाई अवरोधन के लिए है, और (2) उन्नत हवाई रक्षा (एएडी - AAD) मिसाइल, जो कम ऊंचाई के अवरोधन के लिए है (अंतः वायुमंडलीय)। यह मिसाइल कवच 5000 किलोमीटर तक की दूरी से प्रक्षेपित किसी भी मिसाइल को अवरुद्ध कर सकता है। विश्व भर में हो रही सैन्य गतिविधियों पर पढ़ें यहां।
          8. 1 मार्च 2017 को भारत ने स्वदेशी विकसित पराध्वनिक अवरोधक मिसाइल का सफलतापूर्वक परीक्षण प्रक्षेपण किया (एक महीने में दूसरी बार) जो भारत की ओर न्यून ऊंचाई से प्रक्षेपित शत्रु की किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल को नष्ट करने में सक्षम है। बीएमडी प्रणाली हमारे पड़ोस में बड़ी संख्या में पैदा होने वाली लंबी दूरी की बैलिस्टिक मिसाइल से रक्षा करेगी। डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) को उम्मीद है कि वह वर्ष 2022 तक तैनात करने के लिए रक्षा कवच तैयार कर लेगा।
          9. बराक 8 (यहूदी शब्द - आकाशीय बिजली), जो एक भारतीय-इसरायली सतह से हवा में मार करने में सक्षम मिसाइल है, किसी भी प्रकार के हवाई खतरे, वायुयान, हेलीकाप्टर जहाज अवरोधक मिसाइल, और मानवरहित हवाई वाहन (यूएवी) साथ ही क्रूज मिसाइल और लड़ाकू जेट से अधिकतम दूरी 90 से 100 तक रक्षा प्रदान करेगा। भारतीय नौसेना को इसकी खेप पहले ही मिल चुकी है।
          10. गंभीर चुनौती अभी भी बनी हुई है। किसी भी बीएमडी प्रणाली को बैलिस्टिक मिसाइलों की भारी मात्रा में प्रक्षेपण करने से निष्प्रभावी किया जा सकता है। गहरी पैठ वाले आक्रमण विमानों का उपयोग करके परमाणु आक्रमण शुरू किया जा सकता है, वहां बीएमडी प्रौद्योगिकी वहां अनुपयोगी साबित होगी। बीएमडी प्रणालियाँ क्रूज मिसाइल के विरुद्ध भेद्य है क्योंकि वे न्यून ऊंचाइयों पर उड़ती हैं। भारत की अंतःवायुमंडलीय प्रणाली (एएडी - AAD) कुछ हद तक इससे निपटने में सक्षम होगी। भारत की रक्षा तैयारी पर हमारी विस्तृत बोधि जरूर पढ़ें यहां।



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Science and Technology Facts | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथ्य

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    • Day Facts for 23-02-2017 -  SCIENCE AND TECHNOLOGY 
        • 1. Mankind’s curiousity has taken it to the stars. Well, to the Moon and beyond at least! In the space race, nations and individuals are now wondering how to reduce the cost to really make it big.
          2. India’s ISRO made history when it launched 104 satellites in a single launch, on 16 Feb, 2017. Its low cost solutions have repeatedly created ripples across the developed world, and offered satellite-makers a viable launch option. Read our full Bodhi on it here.
          3. However, soon came a challenge from the US. The concept of cost is directly linked to the cost of components used in launch, and most of these are used just once as they burn out never to return. What if they could return? That is the premise used by entrepreneur Elon Musk’s SpaceX reusable rocket.
          4. Elon Musk says - “If one can figure out how to effectively reuse rockets just like airplanes, the cost of access to space will be reduced by as much as a factor of a hundred. That is the fundamental breakthrough needed.
          5. As per their website – SpaceX believes a fully and rapidly reusable rocket is the pivotal breakthrough needed to substantially reduce the cost of space access. The Falcon 9 rocket costs $54 million. However, the cost of fuel for each flight is only around $200,000 – about 0.4% of the total.
          6. The majority of the launch cost comes from building the rocket, which flies only once.  Compare that to a commercial airliner. Each new plane costs about the same as Falcon 9, but can fly multiple times per day, and conduct tens of thousands of flights over its lifetime.
          7. Hence, following the commercial model, a rapidly reusable space launch vehicle could reduce the cost of reaching Earth orbit by a hundredfold. That is where the future efforts will be.
          8. SpaceX’s Grasshopper is a 10-story Vertical Takeoff Vertical Landing (VTVL) vehicle designed to test the technologies needed to return a rocket back to Earth intact. 
          9. The largest rocket-powered VTVL ever flown, consists of a Falcon 9 first stage, a single Merlin 1D engine, four steel landing legs with hydraulic dampers, and a steel support structure.
          10.  SpaceX’s Dragon is a free-flying spacecraft designed to deliver both cargo and people to orbiting destinations. Dragon made history in 2012 when it became the first commercial spacecraft in history to deliver cargo to the International Space Station and safely return cargo to Earth, a feat previously achieved only by governments. Its first manned test flight is expected to take place as early as 2018. Download the SpaceX vision here


        • 1. मानवजाति की जिज्ञासा ने उसे सितारों तक पहुंचा दिया है। कम से कम चंद्रमा और उसके पार तो पहुंचा ही दिया है! अंतरिक्ष की दौड़ में अब इस बात पर अनुसंधान हो रहा है कि इसकी लागत को किस प्रकार से कम किया जाए ताकि इसे और अधिक बढाया जा सके।
          2. भारत के इसरो ने तब इतिहास बनाया जब उसने 16 फरवरी 2017 को एक ही प्रक्षेपण में 104 उपग्रह प्रक्षेपित किये। उसके न्यून लागत समाधान विकसित विश्व में बार-बार चर्चा का विषय बने हैं, साथ ही उसने उपग्रह निर्माताओं को एक व्यवहार्य प्रक्षेपण विकल्प भी प्रदान किया है। इस विषय पर हमारी विस्तृत बोधि यहाँ पढ़ें।
          3. हालांकि शीघ्र ही अमेरिका से एक चुनौती खडी हुई। लागत की परिकल्पना का सीधा संबंध प्रक्षेपण में इस्तेमाल होने वाले पुर्जों की लागत से है, और इनमें से अधिकांश पुर्जे केवल एक बार ही उपयोग किये जा सकते हैं क्योंकि वे कभी भी वापस नहीं आने की स्थिति तक जल जाते हैं। यदि वे वापस उपयोग किये जा सकें तो कैसा रहे? उद्यमी एलोन मस्क द्वारा उपयोग की गई स्पेस एक्स पुनः उपयोग योग्य राकेट संकल्पना का यही आधार है।
          4. एलोन मस्क कहते हैं - “यदि हम समझ लें कि राकेट का भी उसी प्रकार से पुनः प्रभावी उपयोग किया जा सकता है जैसा विमानों का, तो अंतरिक्ष में पहुँचने की लागत एक सौ के एक घातांक तक कम की जा सकती है। यही वह बुनियादी खोज है जो आवश्यक है।“
          5. उनकी वेबसाइट के अनुसार स्पेस एक्स का मानना है कि अंतरिक्ष तक पहुँच की लागत को प्रभावी रूप से कम करने के लिए आवश्यक केंद्रीय खोज है तेजी से पुनः उपयोग योग्य राकेट। फाल्कन 9 राकेट की लागत है 5.4 करोड़ डॉलर। हालांकि प्रत्येक उड़ान के लिए आवश्यक ईंधन की लागत केवल लगभग 2 लाख डॉलर है जो कुल लागत का 0.4 प्रतिशत है।
          6. प्रक्षेपण की अधिकांश लागत राकेट निर्माण के लिए लगती है जो केवल एक बार ही उड़ान भर सकता है। इसकी एक वाणिज्यिक एयरलाइनर से तुलना करें। प्रत्येक नए विमान की लागत लगभग उतनी ही होती है जितनी फाल्कन 9 की होती है परंतु यह प्रतिदिन अनेक उड़ानें भर सकता है, और अपने जीवनकाल में ऐसी असंख्य उड़ानें भरता है।
          7. अतः वाणिज्यिक मॉडल का अनुसरण करते हुए तेजी से पुनः उपयोग योग्य अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहन पृथ्वी की कक्षा में पहुँचने की लागत में लगभग सौ गुणा कमी कर सकता है। भविष्य के सभी प्रयास इसी दिशा में किये जाएँगे।
          8. स्पेस एक्स का ग्रासहॉपर उन प्रौद्योगिकियों का परीक्षण करने वाला एक 10 मंजिला उर्ध्वाधर टेकऑफ उर्ध्वाधर लैंडिंग वाहन है जो राकेट को सहीसलामत प्रथ्वी पर वापस लाने के लिए आवश्यक हैं।
          9. अभी तक उडाये गए सबसे बड़े राकेट चालित वीटीवीएल में एक फाल्कन 9 प्रथम चरण, एक एकल मर्लिन 1 डी इंजन, हाइड्रोलिक डैम्पर सहित चार इस्पात से निर्मित लैंडिंग पैर और एक इस्पात का सहायक तंत्र होता है।
          10. स्पेस एक्स का ड्रैगन एक मुक्त उड़ान करने वाला अंतरिक्ष यान है जो कक्षा में स्थापित गंतव्यों तक रसद और अंतरिक्ष यात्रियों को पहुंचाने के काम आता है। वर्ष 2012 में ड्रैगन ने तब इतिहास बनाया जब वह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र में कार्गो पहुँचाने वाला और कार्गो को सकुशल पृथ्वी पर वापस लाने वाला पहला वाणिज्यिक अंतरिक्ष यान बना। यह एक ऐसा कीर्तिमान था जो इससे पहले केवल सरकारों द्वारा ही प्राप्त किया गया था। इसकी पहली मानवसहित उड़ान वर्ष 2018 में होने की संभावना है। स्पेस एक्स विजन यहाँ डाउनलोड करें।


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    • Day Facts for 16-02-2017 -  SCIENCE AND TECHNOLOGY
        • 1. The Indian Institutes of Science Education and Research (IISERs) were established by the government of India to become the IITs of basic sciences. They were created through "The National Institutes of Technology (Amendment) Bill, 2010, passed in 2012.
          2. The Indian Institute of Science (IISc) or the Tata Institute, Bangalore, is a public university for scientific research and higher education established in 1909 with active support from Jamsetji Tata and the Maharaja of Mysore, and is considered the best University in India. IISc has made significant contributions to life sciences, advanced computing, space, and nuclear technologies.
          3. The Council of Scientific and Industrial Research (CSIR) estd. 1942 is an autonomous body and the largest research and development (R&D) organisation in India. Funded by the Ministry of Science and Technology, it operates as an autonomous body. It works in the fields of aerospace engg., Structural engg., ocean sciences, Life sciences, metallurgy, chemicals, mining, food, petroleum, leather, and environment.
          4. The Tata Institute of Fundamental Research (TIFR) located at Hyderabad and Mumbai is dedicated to basic research in mathematics and the sciences. Research is primarily conducted in the natural sciences, mathematics, the biological sciences and theoretical computer science.
          5. Administere by the IISc, the KVPY programme (Kishore Vaigyanik Protsahan Yojana - Young Scientist Incentive Plan) is a scholarship program by the Government of India, to encourage students for research careers in the basic sciences, engineering and medicine. The aim is to ensure the growth of the best scientific minds for research and development in the country.
          6. India's top nuclear research facility - the Bhabha Atomic Research Centre (BARC), Trombay, Mumbai, is a multi-disciplinary research centre with for advanced R&D in nuclear science, engineering and related areas. It works for peaceful applications of nuclear energy, primarily for power generation.
          7. Padma Vibhushan Shri Vikram Sarabhai (1919 - 1971) was a brilliant physicist and innovator, and instrumental in the creation of both the Indian Space Research Organisation and the Physical Research Laboratory (Ahemadabad). He is considered the father of Indian Space Programme.
          8. Dr.Satish Dhawan (1920 – 2002) is regarded the father of experimental fluid dynamics research in India. He led the successful indigenous development of the Indian space programme, becoming ISRO chairman in 1972.
          9. The Indian Science Congress is a premier scientific organization of the country, established 1914,  promoting science and inculcating the spirit of science through its activities. The January Annual Congress of scientists, science administrators, policy makers and the general public gives a stronger impulse and direction to scientific inquiry.
          10. The Iron pillar of Delhi, considered the world's first iron pillar, was erected in the times of Emperor Chandragupta II Vikramaditya (375–413) and stands as a testament to the skill of ancient Indian blacksmiths because of its high resistance to corrosion.


        • 1. भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान (IISERs)  संस्थानों को भारत सरकार द्वारा मूलभूत विज्ञान के आई.आई.टी. के रूप में बनाया गया है। इन्हें ‘‘राश्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (संशोधन) विधेयकए 2010, जो 2012 में पारित हुआ, से बनाया गया।
          2. भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc) बैंगलुरू जिसे टाटा संस्थान भी कहते हैं, वैज्ञानिक अनुसंधान और उच्च शिक्षा का सार्वजनिक विश्वविद्यालय है जिसे 1909 में जमशेदजी टाटा और मैसूर के महाराज के सहयोग से बनाया गया, और जिसे भारत का सबसे उत्कृश्ट विश्व विद्यालय माना जाता है। इस संसथान ने जीवन विज्ञान, प्रगत संगणन, अंतरिक्ष और परमाणु प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं।
          3. वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकी अनुसंधान परिषद (CSIR) 1942 में स्थापित एक स्वायत्त निकाय है और भारत का सबसे विशाल अनुसंधान और विकास संस्थान है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा पोषित, ये एक स्वायत्त निकाय के रूप में कार्यरत है। ये अनेक क्षेत्रों में काम करता है जिनमें शामिल है विमानन अभियांत्रिकी, ढ़ांचागत अभियांत्रिकी, समुद्र विज्ञान जीवन विज्ञान, धातु विज्ञान, रसायन शास्त्र, खनन, खाद्य, पेट्रोलियम, चमड़ा और पर्यावरण।
          4. टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान (TIFR) जो हैदराबाद और मुंबई में स्थित है, वो गणित और विज्ञान के मूल अनुसंधान को समर्पित है। अनुसंधान के प्रमुख क्षेत्र है प्राकृतिक विज्ञान, गणित, जीव-विज्ञान और सैधांतिक संगणक विज्ञान।
          5. भारतीय विज्ञान संसथान द्वारा प्रशासित, किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना (KVPY) भारत सरकार द्वारा छात्राओं को मूल विज्ञान, अभियांत्रिकी और औषधि विज्ञान में अनुसंधान करियर बनाने हेतु प्रोत्साहित करने का छात्रवृत्ति कार्यक्रम है। इसका लक्ष्य है कि सबसे उत्कृष्ट वैज्ञानिक मस्तिष्कों को देश में अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में लाया जाए।
          6. भारत की शीर्ष परमाणु अनुंसधान ईकाई - भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) ट्रांबे, मुंबई एक बहुक्षेत्र अनुसंधान केंद्र है जहां परमाणु विज्ञान, अभियंत्रिकी और संबद्ध क्षेत्रों में उन्नत अनुसंधान और विकास की सुविधाए हैं। ये संसथान परमाणु उर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग हेतु कार्यरत है, मुख्यतः विद्युत उत्पादन हेतु।
          7. पद्म विभूषण श्री विक्रम साराभाई (1919 से 1971) एक उत्कृष्ट भौतिक शास्त्री और नवप्रवर्तक थे, और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो एवं भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (अहमदाबाद) दोनों के निर्माता थे। उन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक कहा जाता है।
          8. डॉ सतीश धवन (1920 से 2002) को भारत में प्रायोगिक द्रव गति विज्ञान अनुसंधान का जनक माना जाता है। उन्होंने भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के सफल स्वदेशी विकास में योगदान दिया, और 1972 में इसरो के अध्यक्ष बने।
          9. 1914 में स्थापित भारतीय विज्ञान कांग्रेस देश का प्रमुख वैज्ञानिक संगठन है, जो विज्ञान संवर्धन और विज्ञान की भावना बढ़ाने का कार्य करता है। कांग्रेस का वार्षिक  जनवरी सम्मेलन जिसमें वैज्ञानिक, विज्ञान प्रशासक, नीति निर्माता और जनता भागीदार होते हैं वो वैज्ञानिक अनुसंधान को गति व बल प्रदान करता है।
          10. दिल्ली का लौह स्तंभ, जिसे विश्व का पहला लौह स्तंभ मानते हैं, उसे सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य (375 से 413) के समय में बनाया गया था और उसे प्राचीन भारतीय लोहारो के कौशल का अद्भुत सबुत माना जाता है क्योंकि इसमें जंग के प्रति उच्च प्रतिरोध पाया गया है।

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Science and Technology Facts | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथ्य

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    • Day Facts for 09-02-2017 -  SCIENCE AND TECHNOLOGY
        • 1. Nanotechnology is the study and application of very tiny things and can be used in all the other science fields. It works at the “Nano Level” i.e. a nanometer.
          2. The concept of nanoscience or nanotechnology started with the lecture “There is plenty of room at the bottom” by Physicist Richard Feynman in 1959. He was one of the sharpest minds in 20th century Physics.
          3. It incorporates both current work as well as concepts that are more advanced. And the developments span a whole range of industries.
          4. There are four generations of nanotechnology – (1) Passive nanostructures, (2) Active nanostructures, (3) Systems of nanosytems, and (4) Molecular nanosystems.
          5. An inch has 25,400,000 nanometers. The thickness of a normal sheet of paper is about 100,000 nanometers. This can help a layman understand the massive potential of these applications.
          6. If a marble is considered to be a nanometer then one meter would be equal to the size of the earth. Scientific applications that operate at the atomic level can fundamentally alter the working and concept of machines.
          7. Nanotechnology has the ability to see and control individual atoms and molecules. Thus, we can perhaps in the near future, programme individual “medicinal atoms (molecules)” to hit cancerous cells in a human body.
          8. Modern scientists and engineers are finding many ways to make materials at nanoscale to take advantage of their enhanced properties. So, a water-resistant surface or a dust-resistant surface can be created with huge potential applications.
          9. It is estimated over 800 nenotechnology products are publically available. Though not many use the term frequently.
          10. In the next century, the application of nanotechnology will be all-pervasive, all–over. The trends indicate the same.


        • 1. नैनो प्रौद्योगिकी अत्यंत सूक्ष्म वस्तुओं का अध्ययन और अनुप्रयोग है जिसका उपयोग विज्ञान के अन्य सभी क्षेत्रों में किया जा सकता है। ये ‘‘नेनोस्तर‘‘ अर्थात एक नैनौ मीटर के स्तर पर कार्य करती है।
          2. नैनो विज्ञान या नैनो प्रौद्योगिकी की परिकल्पना की शुरुआत रिचर्ड फेनमैन द्वारा वर्ष 1959 में दिए गए “तल में पर्याप्त स्थान उपलब्ध है” (There is plenty of room at the bottom) वे 20वीं सदी भौतिकी के सबसे तीक्ष्ण विचारकों में थे।
          3. नैनो प्रौद्योगिकी में विद्यमान कार्यों और अधिक उन्नत संकल्पनाएँ समाहित हैं। और इसके अनुप्रयोग उद्योगों की एक विस्तारित श्रृंखला को प्रभावित करते हैं।
          4. नैनो प्रौद्योगिकी की चार पीढियां हैं - (1) निष्क्रिय नैनो संरचनाएं,(2) सक्रिय नैनो संरचना, (3) नैनो प्रणालियों की प्रणालियाँ, और (4) आण्विक नैनो प्रणालियाँ।
          5. एक इंच में 25,400,000 नैनो मीटर होते हैं। एक सामान्य कागज की मोटाई लगभग 100,000 नैनो मीटर होती है। इसीसे एक सामान्य व्यक्ति नैनो तकनीक की जबरदस्त संभावनाऐं समझ सकता है।
          6. यदि एक कंचे को एक नैनो मीटर माना जाए तो एक मीटर पृथ्वी के आकार के बराबर होगा। ऐसे वैज्ञानिक अनुप्रयोग जो परमाणु स्तर पर कार्य करें वे मशीनों को मूलभूत स्तर पर परिवर्तित कर सकते हैं
          7. नैनो प्रौद्योगिकी में व्यक्तिगत परमाणुओं और अणुओं को देखने और नियंत्रित करने की क्षमता होती है। अतः, शायद निकट भविष्य में, हम एक-एक "औषधीय परमाणु (अणु)" को ऐसे प्रोग्राम कर पाऐं कि वे मानव शरीर के केंसर कोशिकाओं पर हमला कर सकें
          8. नैनो वैज्ञानिक और अभियंता नैनो पैमाने पर अनेक तरीकों से पदार्थ बनाने की खोज में लगे हैं ताकि उनके बढे हुए गुणों का लाभ लिया जा सके। अतः, एक जल-रोधी सतह या एक धूल-रोधी सतह बनाई जा सकती है जिसके बहुत से अनुप्रयोग हो सकत हैं
          9. ऐसा अनुमान है कि लगभग 800 नैनो प्रौद्योगिकी उत्पाद सार्वजनिक रूप में उपलब्ध हैं। हालांकि इस पदनाम का उपयोग अनेक लोग नहीं करते।
          10. अगली सदी में, नैनो तकनीक के अनुप्रयोग सर्वत्र व्याप्त होंगे। आज के रूझान तो यही दिखाते हैं।

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    • Day Facts for 02-02-2017 -  SCIENCE AND TECHNOLOGY
        • 1. India’s premier research and development organization – the Defence Research and Development Organisation (DRDO) – came into existence in 1958.
          2. It was constituted by the merger of Indian army’s Technical Development Establishment (TDE) and Directorate of Technical Development and Production (DTDP) with Defence Science Organisation (DSO).
          3. DRDO is responsible for the design, development and lead to produce state-of-art sensors, weapon systems, platforms and other equipments. It is the backbone of Indian strategic weapons development structure.
          4. The Brahmos Supersonic cruise missile has been jointly developed by DRDO and Russia’s NPO Mashinostroeyenia. It is the world’s fastest cruise missile under operation, also available for sale to friendly nations.
          5. The DRDO has developed a remotely controlled and electrically operated robot which is used for locating and destroying hazardous objects. It is India’s first remotely operated vehicle.
          6. The DRDO has also developed a non lethal grenade which uses resin from one of the hottest chillies in the world. This is in line with non-lethal decapacitation.
          7. DRDO is in the process of developing a 25 KW laser system capable of destroying missiles in their terminal phase.
          8. J. Manjula, a recognized scientist, has been appointed as the first women Director General of the Electronics and Communication System cluster of DRDO.
          9. DRDO has developed the most advanced radar, The Through Barrier Imaging Radar, named Divya Chakshu (divine eye). It is capable of producing images from the other side of the barrier up to a distance of 20 meters.
          10. In hostage situations also, the Divya Chakshu radar can easily give an idea of the number of persons in the room and their movements.


        • 1. भारत के प्रमुख अनुसंधान एवं विकास संगठन, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) का गठन वर्ष 1958 में किया गया था।
          2. इसका गठन भारतीय थलसेना के तकनीकी विकास प्रतिष्ठान (टीडीई) और तकनीकी विकास एवं उत्पादन निदेशालय (डीटीडीपी) के रक्षा विज्ञान संगठन (डीएसओ) के साथ विलय द्वारा किया गया था।
          3. डीआरडीओ के पास अत्याधुनिक सेंसर, हथियार प्रणाली, प्रक्षेपण मंच और अन्य उपकरणों की रचना, विकास और उत्पादन की जिम्मेदारी है। ये भारतीय सामरिक आयुद्ध विकास ढ़़ांचे की रीढ़ की हड्डी है।
          4. ब्रह्मोस पराध्वनिक क्रूज मिसाइल का विकास भारत के डीआरडीओ और रूस के एनपीओ मशीनोस्त्रोनेइया द्वारा संयुक्त रूप से किया गया है। यह विश्व की सबसे तेज क्रूज मिसाइल है, जो मित्र देषों के लिए खरीद हेतु उपलब्घ है।
          5. डीआरडीओ ने एक सुदूर नियंत्रित और विद्युत चालित रोबोट विकसित किया है जिसका उपयोग खतरनाक वस्तुओं के स्थिति ज्ञान, और उनके विनाश के लिए किया जाता है। यह भारत का पहला सुदूर संचालित वाहन है।
          6. डीआरडीओ ने एक गैर घातक ग्रेनेड विकसित किया है जिसमें विश्व की सबसे तीक्ष्ण मिर्ची का उपयोग किया जाता है। ये गैर-हानिकारक युद्ध के तहत है।
          7. डीआरडीओ एक 25 किलोवाट लेजर प्रणाली विकसित कर रहा है जो मिसाइल को अवसान चरण पर नष्ट करने में सक्षम होगी।
          8. जे. मंजुला, जो एक मान्यताप्राप्त वैज्ञानिक हैं, को डीआरडीओ के इलेक्ट्रॉनिक्स और संचार प्रणाली क्लस्टर की पहली महिला महानिदेशक के रूप में नियुक्त किया गया है।
          9. डीआरडीओ ने एक अति उन्नत राडार, द थ्रु बैरियर इमेजिंग राडार, विकसित किया है जिसे दिव्य चक्षु नाम दिया गया है। यह 20 मीटर तक की दूरी से बाधा की दूसरी ओर से चित्र लेने में सक्षम है।
          10. बंधक स्थिति में दिव्य चक्षु राडार आसानी से कमरे में मौजूद व्यक्तियों की संख्या और उनकी गतिविधियों के बारे में जानकारी देने में सक्षम है।

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Science and Technology Facts | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथ्य

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    • Day Facts for 19-01-2017 - SCIENCE AND TECHNOLOGY
        • 1. The current accepted theory of the Universe’s creation is “The Big Bang Theory” which says that our universe came into being roughly 14 billion (1400 crore) years ago. Space and time both emerged with a fixed energy and matter.
          2. Our planet Earth was created in the solar system by the cooling down of a mass of gas roughly 4.5 billion (450 crore) years ago.
          3. The Indian philosopher Kanada, founder of the Vaisheshika school, developed “atomism” theory proposing light and heat as varieties of the same substance. He denied the existence of “hard” matter saying movement is nothing but flashes of a stream of energy.
          4. Buddhist philosopher Dignaga (fifth century AD) proposed atoms to be point-sized, durationless, and made of energy.
          5. While the mass of the Universe is estimated to be 1053 kg, the mass of the Earth is around 5.9 x 1024 kg.  
          6. While the diameter of the Universe is estimated to be at least 91 billion light years, the diameter of our Earth is around 12,600 km.
          7. The earliest fossil evidence for life on Earth is the microbial mat fossils found in 3.48 billion-year-old sandstone in Western Australia, and the biogenic graphite found in 3.7 billion-year-old metasedimentary rocks in Western Greenland.
          8. The Earth’s entire structure is made up of the Inner Core, Outer Core, Asthenosphere, Mantle, Upper Mantle, Crust and the Lithosphere.
          9. Seven tectonic plates make up the Earth’s upper surface crust – the Pacific Plate, African Plate, North American Plate, Indo-Australian Plate, Eurasian Plate, South American Plate, and the Antartic Plate.
          10. In general, the proximity to oceans will moderate the climate. Thus, the Scandinavian peninsula has more moderate climate than similarly northern latitudes of northern Canada.


        • 1. ब्रह्माण्ड के निर्माण का वर्तमान स्वीकृत सिद्धांत है “बड़ा धमाका (बिग बैंग) सिद्धांत” जो कहता है कि हमारा ब्रह्माण्ड लगभग 14 खरब (1400 करोड़) वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। अंतरिक्ष और समय दोनों एक निश्चित ऊर्जा और पदार्थ के साथ अवतरित हुए
          2. सौर मंडल में हमारे पृथ्वी ग्रह का निर्माण गैस के एक पिंड के ठंडा होने के परिणामस्वरूप लगभग 4.5 खरब (450 करोड़) वर्ष पूर्व हुआ
          3. वैशेशिका पंथ के संस्थापक, भारतीय दार्शनिक कानडा ने “अणुवाद” सिद्धांत को विकसित किया जिसमें यह विचार व्यक्त किया गया था कि प्रकाश और ऊष्मा एक ही पदार्थ की बहुरूपता (किस्में) है। उन्होंने “कठोर” पदार्थ के अस्तित्व को यह कहते हुए नकारा कि गति ऊर्जा की एक धारा की दीप्ति के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है
          4. बौद्ध दार्शनिक दिग्नाग (पांचवी सदी ईस्वी) ने प्रतिपादित किया था कि अणु बिंदु के आकार के होते हैं, अवधिहीन होते हैं और ऊर्जा से बने होते हैं
          5. जबकि ब्रह्माण्ड का परिमाण अनुमानतः 1053 किलोग्राम (10 घात 53) है वहीं पृथ्वी का परिमाण लगभग 5.9 गुणा 1024 किलोग्राम है
          6. जबकि ब्रह्माण्ड का व्यास अनुमानतः न्यूनतम 91 अरब प्रकाश वर्ष है वहीं हमारी पृथ्वी का व्यास लगभग 12,600 किलोमीटर है
          7. पृथ्वी पर जीवन के साक्ष्य रुपी प्राचीनतम जीवाश्म हैं सूक्ष्मजीव चटाई (मैट) जीवाश्म जो 3.48 अरब वर्ष पुराने पश्चिम ऑस्ट्रेलिया के बलुआ पत्थर में पाए गए थे और 3.7 अरब वर्ष पुराने पश्चिम ग्रीनलैंड की मेटातलछटी चट्टानों के जीव-जनित ग्रेफाइट में पाए गए थे
          8. पृथ्वी की संपूर्ण संरचना आतंरिक तत्व (कोर), बाह्य तत्व (कोर), एस्थेनोस्फीयर, मेंटल, ऊपरी मेंटल, भूपटल और स्थलमंडल से बनी हुई है
          9. सात विवर्तनिकी प्लेटों ने पृथ्वी के ऊपरी सतह भूपटल का निर्माण किया है – प्रशांत प्लेट, अफ़्रीकी प्लेट, उत्तर अमेरिकी प्लेट, इंडो-ऑस्ट्रलियाई प्लेट, यूरेशियाई प्लेट, दक्षिण अमेरिकी प्लेट और अंटार्कटिक प्लेट
          10. सामान्यतः महासागरों से निकटता जलवायु को मध्यम बनाएगी। इस प्रकार, स्कैंडिनेवियाई प्रायद्वीप की जलवायु उत्तरी कनाडा के समान उत्तरी अक्षांशों की जलवायु की तुलना में अधिक मध्यम होती है

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    • Day Facts for 12-01-2017 - SCIENCE AND TECHNOLOGY
        • 1. ISRO was formed on Independence day, 1969 by Dr.Vikram Sarabhai, who felt we would be second to none in application of advanced technologies.
          2. ISRO is one of the six space agencies in the world with the capability to build and launch satellites from its own soil. India no longer needs the US based GPS system, as its own navigational system IRNSS is fully functional.
          3. The Soviet Union launched the world's first artificial satellite, Sputnik 1, in 1957. More than 6,600 satellites from 40 countries have been launched since then, and more than 3,500 are still in orbit.
          4. The nations which possess the capability to design and also launch satellites are – Russia (formerly Soviet Union), USA, France, Japan, China, UK, India, Israel, Ukraine (formerly Soviet Union), Iran and North Korea.
          5. The first academic treatise on the use of rocketry to launch spacecraft was published in 1903 by Konstantin Tsiolkovsky (1857–1935) titled “Exploring Space Using Jet Propulsion Devices”.
          6. Space stations are artificial orbital structures that are designed for human beings to live on in outer space. It does not have major propulsion or landing facilities.
          7. The largest artificial satellite currently orbiting the Earth is the International Space Station, a joint project among five participating space agencies: NASA, Roscosmos (Russia), JAXA (Japan), ESA (Europe), and CSA (Canada).
          8. Satellites are propelled by rockets to their orbits, either from a launch pad on land, or at sea (from a submarine or a mobile maritime platform) or aboard a plane.
          9. The first artificial satellite was Sputnik 1 (Soviet Union October 4, 1957). This triggered the Space Race between the USA and the Soviet Union.
          10. The United States Space Surveillance Network (SSN), a division of the United States Strategic Command, tracks objects in Earth's orbit (since 1957) when the Soviet Union launched the Sputnik I.


        • 1. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना वर्ष 1969 के स्वतंत्रता दिवस को डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा की गई थी, उनका मानना था कि उन्नत प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग की दृष्टि से यह किसी से पीछे नहीं होगा
          2. इसरो विश्व के ऐसे छह अंतरिक्ष संगठनों में से एक है जिसके पास अपनी जमीन से उपग्रहों का निर्माण करने और प्रक्षेपण करने की क्षमता है। भारत को अब अमेरिका की जीपीएस प्रणाली की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसकी अपनी नौवहन प्रणाली आईआरएनएसएस पूर्णतः परिचालात्मक हो गई है
          3. सोवियत संघ द्वारा वर्ष 1957 में विश्व के पहले कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक 1 का प्रक्षेपण किया गया था। तब से लेकर अब तक 40 देशों से 6,600 से अधिक उपग्रह प्रक्षेपित किये जा चुके हैं, जिनमें से 3,500 से अधिक उपग्रह अभी भी कक्षा में हैं
          4. जिन देशों के पास उपग्रहों के निर्माण और प्रक्षेपण की क्षमता उपलब्ध है वे निम्नानुसार हैं - रूस (पूर्व का सोवियत संघ), अमेरिका, फ्रांस, जापान, चीन, यूनाइटेड किंगडम, भारत, इजराइल, यूक्रेन (पूर्व का सोवियत संघ), ईरान और उत्तर कोरिया
          5. अंतरिक्ष यानों के प्रक्षेपण के लिए राकेट्री के उपयोग पर पहले शैक्षिक निबंध का प्रकाशन कॉन्स्टेंटिन सियोलकोवस्की (1857 - 1935) द्वारा वर्ष 1903 में किया गया था, जिसका शीर्षक था “जेट प्रणोदन उपकरणों का उपयोग करते हुए अंतरिक्ष की खोज”
          6. अंतरिक्ष केंद्र कृत्रिम कक्षीय संरचनाएं होते हैं जिनकी रचना मनुष्य प्राणियों के बाहरी अंतरिक्ष में रहने के प्रयोजन से की जाति है। इसमें प्रमुख प्रणोदक या अवतरण सुविधाएँ नहीं होती
          7. वर्तमान में पृथ्वी की कक्षा में विचरण करने वाला सबसे बड़ा कृत्रिम उपग्रह अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष केंद्र है, जो पांच भागीदार देशों के बीच की संयुक्त परियोजना है - नासा, रोसकोसमोस (रूस), जाक्सा (जापान), ईएसए (यूरोप), और सीएसए (कनाडा)
          8. उपग्रहों को या तो प्रक्षेपण पैड्स से या भूमि से या समुद्र में (एक पनडुब्बी से या एक मोबाइल समुद्री मंच से) या एक हवाई जहाज पर रखकर रॉकेट्स द्वारा उनकी कक्षाओं में प्रणोदित (चालित) किया जाता है
          9. पहला कृत्रिम उपग्रह स्पुतनिक 1 था (सोवियत संघ, 4 अक्टूबर, 1957) । इसने अमेरिका और सोवियत संघ के बीच अंतरिक्ष दौड़ को आरंभ किया था
          10. अमेरिकी अंतरिक्ष निगरानी संजाल (एनएसएस), जो अमेरिकी सामरिक कमान का एक हिस्सा है, पृथ्वी की कक्षा में वस्तुओं की खोज करता है (वर्ष 1957 से), जब सोवियत संघ द्वारा स्पुतनिक 1 का प्रक्षेपण किया गया था

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Science and Technology Facts | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथ्य

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    • Day Facts for 05-01-2017 - SCIENCE AND TECHNOLOGY
        • 1. From largest to smallest, the groups in which life forms are categorized, are – Kingdom, Phylum, Class, Order, Family, Genus, Species
          2. Kingdoms are giant groups, with millions of kinds of organisms in each. There are usually five kingdoms, containing animals, plants, fungi, prokaryotes, and protoctists (the last two are different sorts of one-celled organisms). Other systems have six or more kingdoms.
          3. Species are the smallest groups. A species consists of all the animals of the same type, able to breed and produce young.
          4. In the six kingdom classification, Life on earth is divided into – Archaebacteria, Eubacteria, Protists, Fungi, Plants and Animals.
          5. Archaebacteria are bacteria with internal membranes and are found in deep-ocean thermal vents, hot springs, and brine marine environments.
          6. Eubacteria are single-celled organisms without a nucleus. Bacteria make up this kingdom. There are more forms of bacteria than any other organism on Earth.
          7. Protists are mostly single-celled organisms that have a nucleus, and usually live in water. Some move around, while others are stationary. Examples : some algae, paramecium, and amoeba
          8. Fungi are motionless organisms that absorb nutrients for survival. Examples : mushrooms, molds, and yeasts.
          9. Plants contain chlorophyll, the green pigment necessary for photosynthesis. They use it to convert energy from sunlight into food. Their cell walls are made sturdy by a material called cellulose. Examples : garden flowers, agricultural crops, grasses, shrubs, ferns, mosses, and conifers.
          10. Animals are multi-celled organisms, eat food for survival, and possess nervous systems. Two classes – vertebrates and invertebrates. Examples : mammals, amphibians, reptiles, birds and fish. Basically, all of us!


        • 1. सबसे बड़े से सबसे छोटे तक, जिन समूहों में जीवन रूपों को वर्गीकृत किया जाता है, वे निम्नानुसार हैं - साम्राज्य, जाति, वर्ग, क्रम, परिवार, गण, प्रजाति
          2. साम्राज्य सबसे बड़े समूह होते हैं जिनमें प्रत्येक में करोड़ों प्रकार के जीवाणु होते हैं। आम तौर पर पांच प्रकार के साम्राज्य होते हैं, जिनमें पशु, वनस्पति, कवक, प्रोकेरियोट, प्रोटोक्टिस्ट शामिल होते हैं (इनमें से अंतिम दो एक कोशिका वाले भिन्न प्रकार के जीवाणु होते हैं) । अन्य व्यवस्थाओं में छह या अधिक साम्राज्य होते हैं
          3. प्रजातियाँ सबसे छोटे समूह होते हैं। एक प्रजाति में एक ही प्रकार के सभी पशु शामिल होते हैं, जो प्रजनन में और शिशु पुनर्निर्माण में सक्षम होते हैं।
          4. छह साम्राज्य वर्गीकरण में पृथ्वी का जीवन निम्न में विभाजित होता है - आर्चेबैक्टीरिया, इयुबैक्टीरिया, प्रोटिस्ट, कवक, वनस्पति और पशु
          5. आर्चेबैक्टीरिया आतंरिक झिल्ली वाले बैक्टीरिया होते हैं और ये गहरे समुद्र तापीय छिद्रों, गर्म झरनों और खारे समुद्री वातावरण में पाए जाते हैं
          6. इयुबैक्टीरिया बिना नाभिक वाले एकल-कोशिका जीवाणु होते हैं। बैक्टीरिया इस साम्राज्य का निर्माण करते हैं। पृथ्वी पर अन्य किसी भी जीव रूप की तुलना में बैक्टीरिया अधिक संख्या में होते हैं
          7. प्रोटिस्ट अधिकतर ऐसे एकल-कोशिका जीवाणु होते हैं जिनमें नाभिक होता है और ये आमतौर पर जल में रहते हैं। इनमें से कुछ एक स्थान से दूसरे स्थान पर विचरण करते हैं जबकि अन्य स्थाई होते हैं। उदाहरण - कुछ शैवाल, पेरामिशियम और अमीबा
          8. कवक गतिहीन जीवाणु होते हैं जो अस्तित्व के लिए पोषकों को अवशोषित करते हैं। उदाहरण - कुकुरमुत्ता, फफूंद, और खमीर
          9. वनस्पतियों में पर्णहरित (क्लोरोफिल) होता है, वह हरा रंग जो प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक है। के इसका उपयोग सूर्य प्रकाश से प्राप्त ऊर्जा को भोजन में परिवर्तित करने के लिए करते हैं। उनकी कोशिकाओं की दीवारें सेल्यूलोस नामक पदार्थ से कड़ी बनाई जाती हैं। उदाहरण - उद्यान फूल, कृषि फसलें, घांस, झाड़ियाँ, फर्न, काई और शंकु वृक्ष
          10. पशु बहु-कोशिका वाले जीव होते हैं, जो जीवित रहने के लिए भोजन ग्रहण करते हैं, और इनमें तंत्रिका तंत्र होता है। इनके दो वर्ग होते हैं - कशेरुकी जीव (रीढ़ की हड्डी वाले) और अकशेरुकी जीव (बिना रीढ़ की हड्डी वाले) । उदाहरण - स्तनधारी, उभयचर, सरिसृप, पक्षी और मछलियाँ। मूलतः हम सभी !

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    • Day Facts for 29-12-2016 - SCIENCE AND TECHNOLOGY
        • 1. Ancient Indian scholar Panini (5th century BC) made discoveries in phonetics, phonology, and morphology, which remain more advanced than any equivalent Western theory till 1950s.
          2. The scholar Baudhayana (8th century BCE) composed the Baudhayana Sulba Sutra, and mentioned simple Pythagorean triplets like (3,4,5), (5,12,13), (8,15,17) etc. "The rope which is stretched across the diagonal of a square produces an area double the size of the original square."
          3. The trigonometric functions of sine and versine were used by Aryabhata, the mathematician, around 450 AD.
          4. The calculus theorem today known as "Rolle's theorem" was stated by mathematician Bhaskara II, in the 12th century.
          5. The Indus Valley Civilisation was the biggest urban settlement, exceeding 1000 sites at its peak. It used a system of standardization, using weights and measures, as seen in multiple excavations.
          6. Kanada, an Indian philosopher around 200 BC, proposed that atoms are indivisible and eternal, can neither be created nor destroyed, and that each one possesses its own distinct nature.
          7. The Buddhist school of atomism considered atoms to be point-sized, durationless, and made of energy. Dharmakirti and Dignāga (7th century AD) were important proponents.
          8. Early volumes of the Encyclopædia Britannica described cartographic charts made by the seafaring Dravidian people!
          9. The earliest Indian astronomical text was the Vedanga Jyotish, by Lagadha (dating 1400–1200 BCE). It details several astronomical attributes generally applied for timing social and religious events.
          10. The scholar Schwartzberg (2008) said that “On the subject of surviving maps, though not numerous, a number of map-like graffiti appear among the thousands of Stone Age Indian cave paintings; and at least one complex Mesolithic diagram is believed to be a representation of the cosmos!”


        • 1. प्राचीन भारतीय विद्वान पाणिनि (5 वीं सदी ईसापूर्व) ने ध्वनि-शास्त्र, भाषा की ध्वनि प्रणाली और आकृति विज्ञान की खोजें की, जो 1950 के दशक तक किये गए किसी भी समकक्ष पश्चिमी सिद्धांत से अधिक उन्नत बनी रहीं
          2. विद्वान बौधायन (8 वीं सदी ईसापूर्व) ने बौधायन सुलभ सूत्र की रचना की और सरल पैथागोरसवादी त्रिसूत्रियों जैसे (3, 4, 5), (5, 12, 13), (8, 15, 17) इत्यादि का उल्लेख किया। “वह रस्सी जो किसी वर्ग के विकर्ण के पार खींची जाती है, वह मूल वर्ग से दुगने क्षेत्रफल के वर्ग का निर्माण करती है”
          3. साइन और वरसाइन के त्रिकोणमितीय फलनों का उपयोग लगभग 450 ईस्वी के गणितज्ञ आर्यभट द्वारा किया गया था
          4. आज जिस कलन की प्रमेय को “रोले की प्रमेय” कहा जाता था इसे 12 वीं सदी में गणितज्ञ भास्कर द्वितीय द्वारा बताया गया था
          5. सिंधु घाटी की सभ्यता सबसे बड़ी शहरी बस्ती थी, जो इसके चरम पर 1000 से अधिक स्थलों पर फैली हुई थी। इसमें वजनों और मापों की व्यवस्था का उपयोग करते हुए मानकीकरण की प्रणाली का उपयोग किया जाता था, जैसा कि बहुविध उत्खननों में प्रकट हुआ है
          6. लगभग 200 ईसापूर्व के भारतीय दार्शनिक कानडा ने यह प्रस्तावित किया था कि परमाणु अदृश्य और अविनाशी होते हैं, उनका न तो निर्माण किया जा सकता है और न ही उन्हें नष्ट किया जा सकता है, और यह भी कि इनमें से प्रत्येक की अपनी विशिष्ट प्रकृति होती है
          7. परमाणुवाद का बौद्ध संप्रदाय मानता था कि परमाणु बिंदु के आकार के होते हैं, अवधिविहीन होते हैं और ये ऊर्जा से निर्मित होते हैं धर्मकृति और दिग्नाग (7 वीं सदी ईस्वी) महत्वपूर्ण प्रस्तावक थे
          8. इनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के प्रारंभिक संस्करण नौवहन करने वाले द्रविड़ लोगों द्वारा बनाए गए मानचित्रण लेखाचित्रों का वर्णन करते थे !
          9. सबसे प्रारंभिक भारतीय खगोलीय ग्रन्थ लगध द्वारा रचित (1400 से 1200 ईसापूर्व) वेदांग ज्योतिष था। यह अनेक खगोलीय गुणों का वर्णन करता है जिन्हें आमतौर पर धार्मिक और सामाजिक आयोजनों की समयानुकूलता के निर्धारण के लिए उपयोग किया जाता था
          10. विद्वान श्वार्त्ज्बर्ग (2008) ने कहा था कि “जीवित मानचित्रों के विषय पर, हालांकि ये संख्या में अधिक नहीं हैं, हजारों भारतीय पाषाणयुगीन गुफा चित्रों के बीच मानचित्र-सदृश भित्ति चित्र प्रकट होते हैं य और इनमें से कम से कम एक जटिल मध्य-पाषाणकालीन आरेख को ब्रह्माण्ड का प्रतिनिधित्व माना जाता है

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Science and Technology Facts | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथ्य

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    • Day Facts for 22-12-2016 - SCINECE AND TECHNOLOGY 
        • 1. Each year, more than 10 lac earthquakes shake the Earth. The Ring of Fire along the Pacific Ocean is most prone to volcanoes and earthquakes.
          2. It takes 8 minutes 17 seconds for light to travel from the Sun’s surface to the Earth. Although inside the core of the Sun, light photons may take several thousand years to escape to Sun's surface!
          3. October 12th, 1999 was declared “The Day of Six Billion” based on projections by United Nations.
          4. The air at the summit of Mount Everest (around 29,029 feet) is only a third as thick as the air at sea level.
          5. "India" was once attached to Madagascar, and then drifted along through sea to hit the Eurasian plate.
          6. It is estimated that each second around 100 lightning bolts strike the Earth. And each year, lightning kills approximately 1000 people.
          7. 10 percent of all human beings ever born are alive at this very moment. That indicates how huge the population growth has been in recent decades.
          8. One of the fastest ever plate movements recorded in recent geological history has been shown by the Indian plate travelling to hit Eurasian plate.
          9. The Himalayas are the youngest of mountain ranges on Earth.
          10. The oldest mountain ranges in India is the Aravalli ranges, estimated to be at least 150 crore years old!


        • 1. प्रति वर्ष 10 लाख से अधिक भूकंप पृथ्वी को दहलाते हैं। प्रशांत महासागर के इर्द-गिर्द का आग का गोला भूकंप और ज्वालामुखी की दृष्टि से सर्वाधिक प्रवण है
          2. प्रकाश को सूर्य की सतह से पृथ्वी तक की यात्रा करने में 8 मिनट 17 सेकंड का समय लगता है। हालांकि सूर्य के अंतर्भाग के अन्दर प्रकाश के फोटॉनों को सूर्य की सतह तक पहुँचने में हजारों वर्ष लग सकते हैं  
          3. संयुक्त राष्ट्र द्वारा किये गए अनुमानों के आधार पर 12 अक्टूबर 1999 को छह अरब का वर्ष घोषित किया गया था
          4. माउंट एवरेस्ट के शिखर (लगभग 29,029 फुट) पर वायु की गहनता समुद्र की सतह की वायु की गहनता से केवल एक-तिहाई होती है
          5. किसी समय “भारत” मेडागास्कर से संलग्न था, फिर वह समुद्र के माध्यम से खिसकते हुए यूरेशियाई प्लेट से टकराया
          6. ऐसा अनुमान है कि प्रत्येक  सेकंड लगभग 100 विद्युत तीर पृथ्वी से टकराते हैं। और प्रति वर्ष लगभग 1000 लोगों की बिजली गिरने से मृत्यु होती है
          7. अब तक पैदा हुए सभी मानव जीवों में से 10 प्रतिशत इस समय भी जीवित हैं। यह दर्शाता है कि हाल के वर्षों के दौरान कितनी विशाल जनसंख्या वृद्धि हुई है
          8. हाल के भूगर्भीय इतिहास में दर्ज सबसे तेज प्लेट गतिविधियों में से एक यूरेशियाई प्लेट से टकराने वाली भारतीय प्लेट द्वारा दर्ज की गई है
          9. हिमालय पर्वत श्रृंखला पृथ्वी की सबसे युवा पर्वत श्रृंखलाएं हैं 
          10. भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला अरावली पर्वत श्रृंखला है, अनुमान है कि यह लगभग 150 करोड़ वर्ष पुरानी है


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    • Day Facts for 15-12-2016 - SCIENCE AND TECHNOLOGY  
        • 1. ISRO was founded by Dr. Vikram Sarabhai on the independence day of India, i.e. 15th August, 1969
          2. The most interesting and proud fact about ISRO is that it has built the largest domestic communication satellite system in Asia called the INSAT (Indian Satellite System)
          3. ISRO sells satellites at much cheaper rates than any other national space agency
          4. ISRO is the first organization to accomplish the Mars Mission in the very first attempt, and its Mars Mission was cheaper than the films that were set in space
          5. SLV-3 was India’s first indigenous satellite launch vehicle and Dr APJ Abdul Kalam was the director of the project
          6. ISRO’s expenditure in the last 40 years = Half of NASA’s single year budget
          7. ISRO has also developed Bhuvan, a web-based 3D satellite imagery tool which is the Indian incarnation of Google Earth
          8. ISRO has till date launched 23 consecutive successful PSLV launches (Polar Satellite Launch Vehicles – a workhorse)
          9. India is now the third nation to launch multiple satellites in one go - after Russia and the United States 

          10. ISRO will launch 83 satellites, 80 of them foreign, in one go in January 2017. A world record!
           

        • 1. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना डॉ. विक्रम साराभाई द्वारा भारत के स्वतंत्रता दिवस, अर्थात 15 अक्गास्त 1969 को हुई थी
          2. इसरो के बारे में सर्वाधिक रोचक और गौरवशाली तथ्य यह है कि इसने इनसैट नामक एशिया की सबसे बड़ी घरेलू दूरसंचार व्यवस्था निर्मित की है
          3. इसरो अपने द्वारा निर्मित उपग्रह विश्व की किसी भी अन्य अंतरिक्ष संस्था से सस्ते बेचता है
          4. इसरो  मंगलग्रह अभियान एक बार में ही पूरा करने वाला विश्व का एकमात्र संगठन है और इसका मंगल यान अभियान अंतरिक्ष में स्थापित होने वाली फिल्मों से भी सस्ता था
          5. एसएलवी-3 भारत का पहला स्वदेशी उपग्रह प्रक्षेपण वाहन था और डॉ. ए पी जे अब्दुल कलाम इस परियोजना के निदेशक थे
          6. पिछले 40 वर्षों का इसरो का व्यय नासा के एक वर्ष के बजट के बराबर है
          7. इसरो ने भुवन नामक वेब आधारित 3 डी उपग्रह बिंब सृष्टि  उपकरण भी विकसित किया था जो गूगल अर्थ का भारतीय संस्करण था
          8. आज तक इसरो ने 23 लगातार सफल पीएसएलवी (ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण वाहन- एक अत्यधिक सक्षमता से कार्य करने वाला उपकरण) प्रक्षेपण किये हैं
          9. भारत अब रूस और अमेरिका के बाद विश्व का तीसरा ऐसा देश जिसने एक बार में बहुविध उपग्रह प्रक्षेपित किये हैं
          10. इसरो द्वारा जनवरी 2017 में एकसाथ 83 उपग्रह प्रक्षेपित किये जाएँगे, जिनमें से 80 विदेशी उपग्रह होंगे साथ ही यह एक विश्व कीर्तिमान होगा 
           



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